Friday, July 16, 2010

यक्षिणी

                                                                        बिहार का इतिहास अत्यंत समृद्धशाली रहा है ! इतिहास के अनेक युगों से बिहार में स्थापत्य कला सम्बन्धी प्रबल आन्दोलन चलते रहे है ,वैसे आन्दोलन भारत के किसी और भाग ने शायद ही देखे होंगे ! अपनी उच्च राजनीती स्थिति के कारण बिहार एक समृद्धशाली राज्य था और यही कारण था कि संस्कृति के क्षेत्र में भी उसका स्थान अत्यंत प्रमुख था ! बिहार में जब जब राजनीती के क्षेत्र में कोई बड़ा उत्थान हुआ तब तब उसी के अनुरूप यहाँ संस्कृति में भी उन्नति दिखाई पड़ी तथा स्थापत्य कला का विकास भी बड़ी प्रबलता के साथ हुआ !इस बात के कई उदहारण इतिहास में विधमान है ! इसा से पूर्व चौथी शताब्दी कि यक्षिणी कि मूर्ति ऐसा ही एक उदहारण है !
                                                           १८ अक्टूबर १९१७ को पटना के दीदारगंज से प्राप्त यक्षिणी कि प्रतिमा जिसे कभी दीदारगंज कि यक्षिणी तो कभी स्त्रीरत्न का नाम दिया जाता रहा है पर जो भी हो यह प्रतिमा अपनी सुन्दर सरचना के लिए लगातार चर्चित रहा है ! इसपर लगे पत्थर और उसपर कि गयी पौलिस के अधर पर इसे मौर्यकालीन प्रतिमा माना गया है!  ईशा से कोई 300 वर्ष पहले गड़े हुए ये मूर्ति सौन्दर्य के अनन्यत उदहारण प्रस्तुत करने के कारण यह मूर्ति पुरे विश्व के एक अनमोल निधि बन गयी! वैसे भी ये मौर्यकालीन साझी संस्कृति कि एक महान उपलव्धि है ! सिकंदर भले ही मगध से बिना लड़े लौट गया हो और चर्द्रगुप्त ने सेलुक्स को पराजित कर यूनान भेज दिया ! लेकिन यूनानियो ने कला संस्कृति और स्थापत्य कि हमारी महान परम्परा में अपने कुछ रंग तो घोल ही दिए ! यह मूर्ति भी उस समस्विक कि संस्कृति को दर्शाती  है !  
                                                                             मटियाले भूरे रंग के बालू के पत्थर से बनी यह मूर्ति सीधी खड़ी हुई मुद्रा में एक स्त्री को दर्शाती है ! इसका एक हाथ उपर कि ओर उठा है, जिसमे वह एक चामड को पकरे हुए है ,जबकि दूसरा हाथ टुटा हुआ है ! उपर का शारीर खुला है पर कमर के निचे का भाग कपडे और आभूषण से ढका है ! स्त्री शारीर के सौन्दर्य का यह उतम और प्रभावशाली प्रदर्शन है ! ऐसा माना जाता है कि यह किसी स्त्री विशेष कि मूर्ति नहीं बल्कि नारी के शारीर के सौन्दर्य कि एक काल्पनिक प्रस्तुति है ! चेहरे पर सुन्दरता के साथ शांति कि अभिव्यक्ति  इसके प्रभाव को और बढाती है ! पटना संग्रहालय के अपर निर्देशक सहदेव जी भी इसे मौर्यकालीन मानते है 
                                                              इस बात को लेकर बहस होती रहती है कि यह मूर्ति किसी यक्षिणी कि है या किसी सामान्य चमार धारणी ग्रामीण स्त्री कि अथवा किसी ग्राम देवी कि ! मगर इसके सौन्दर्य के महान प्रतिमूर्ति हिने में किसी को शक नहीं है ! प्रशिद्ध इतिहासकार इम्तियाज़ अहमद का मानना है कि सौन्दर्य के काल्पनिक प्रतिमाओ के आधार पर गढ़ी गयी प्राचीन मूर्ति है ऐसी मूर्ति का निर्माण कि परम्परा यूनान में अधिक रही है ! वे इस यक्षिणी कि मूर्ति पर तत्कालीन यूनानी ईरानी कला के प्रभाव से भी इंकार नहीं करते है ! यह प्रतिमा चाहे जिसकी हो यह सुन्दरता के महान मूर्ति तो है ही ! पटना के दीदारगंज के निकट गंगा घाट से प्राप्त इस प्रतिमा को दीदारगंज कि यक्षिणी के नाम से जाना जाता है ! चमार धारणी इस मूर्ति के बारे में अब तक सिर्फ इतना ही पता चल पाया है कि यह मूर्ति ईशा के तीसरी सदी पूर्व मौर्यकाल में गढ़ी गयी थी ! यह प्रतिमा किसी यक्षिणी का हो या किसी ग्रामीण स्त्री का लेकिन इतना तो पता चलता है कि उस समय का भारतीय समाज सौन्दर्य और कला के प्रति गहरा अनुराग रखता था !