Friday, July 16, 2010

यक्षिणी

                                                                        बिहार का इतिहास अत्यंत समृद्धशाली रहा है ! इतिहास के अनेक युगों से बिहार में स्थापत्य कला सम्बन्धी प्रबल आन्दोलन चलते रहे है ,वैसे आन्दोलन भारत के किसी और भाग ने शायद ही देखे होंगे ! अपनी उच्च राजनीती स्थिति के कारण बिहार एक समृद्धशाली राज्य था और यही कारण था कि संस्कृति के क्षेत्र में भी उसका स्थान अत्यंत प्रमुख था ! बिहार में जब जब राजनीती के क्षेत्र में कोई बड़ा उत्थान हुआ तब तब उसी के अनुरूप यहाँ संस्कृति में भी उन्नति दिखाई पड़ी तथा स्थापत्य कला का विकास भी बड़ी प्रबलता के साथ हुआ !इस बात के कई उदहारण इतिहास में विधमान है ! इसा से पूर्व चौथी शताब्दी कि यक्षिणी कि मूर्ति ऐसा ही एक उदहारण है !
                                                           १८ अक्टूबर १९१७ को पटना के दीदारगंज से प्राप्त यक्षिणी कि प्रतिमा जिसे कभी दीदारगंज कि यक्षिणी तो कभी स्त्रीरत्न का नाम दिया जाता रहा है पर जो भी हो यह प्रतिमा अपनी सुन्दर सरचना के लिए लगातार चर्चित रहा है ! इसपर लगे पत्थर और उसपर कि गयी पौलिस के अधर पर इसे मौर्यकालीन प्रतिमा माना गया है!  ईशा से कोई 300 वर्ष पहले गड़े हुए ये मूर्ति सौन्दर्य के अनन्यत उदहारण प्रस्तुत करने के कारण यह मूर्ति पुरे विश्व के एक अनमोल निधि बन गयी! वैसे भी ये मौर्यकालीन साझी संस्कृति कि एक महान उपलव्धि है ! सिकंदर भले ही मगध से बिना लड़े लौट गया हो और चर्द्रगुप्त ने सेलुक्स को पराजित कर यूनान भेज दिया ! लेकिन यूनानियो ने कला संस्कृति और स्थापत्य कि हमारी महान परम्परा में अपने कुछ रंग तो घोल ही दिए ! यह मूर्ति भी उस समस्विक कि संस्कृति को दर्शाती  है !  
                                                                             मटियाले भूरे रंग के बालू के पत्थर से बनी यह मूर्ति सीधी खड़ी हुई मुद्रा में एक स्त्री को दर्शाती है ! इसका एक हाथ उपर कि ओर उठा है, जिसमे वह एक चामड को पकरे हुए है ,जबकि दूसरा हाथ टुटा हुआ है ! उपर का शारीर खुला है पर कमर के निचे का भाग कपडे और आभूषण से ढका है ! स्त्री शारीर के सौन्दर्य का यह उतम और प्रभावशाली प्रदर्शन है ! ऐसा माना जाता है कि यह किसी स्त्री विशेष कि मूर्ति नहीं बल्कि नारी के शारीर के सौन्दर्य कि एक काल्पनिक प्रस्तुति है ! चेहरे पर सुन्दरता के साथ शांति कि अभिव्यक्ति  इसके प्रभाव को और बढाती है ! पटना संग्रहालय के अपर निर्देशक सहदेव जी भी इसे मौर्यकालीन मानते है 
                                                              इस बात को लेकर बहस होती रहती है कि यह मूर्ति किसी यक्षिणी कि है या किसी सामान्य चमार धारणी ग्रामीण स्त्री कि अथवा किसी ग्राम देवी कि ! मगर इसके सौन्दर्य के महान प्रतिमूर्ति हिने में किसी को शक नहीं है ! प्रशिद्ध इतिहासकार इम्तियाज़ अहमद का मानना है कि सौन्दर्य के काल्पनिक प्रतिमाओ के आधार पर गढ़ी गयी प्राचीन मूर्ति है ऐसी मूर्ति का निर्माण कि परम्परा यूनान में अधिक रही है ! वे इस यक्षिणी कि मूर्ति पर तत्कालीन यूनानी ईरानी कला के प्रभाव से भी इंकार नहीं करते है ! यह प्रतिमा चाहे जिसकी हो यह सुन्दरता के महान मूर्ति तो है ही ! पटना के दीदारगंज के निकट गंगा घाट से प्राप्त इस प्रतिमा को दीदारगंज कि यक्षिणी के नाम से जाना जाता है ! चमार धारणी इस मूर्ति के बारे में अब तक सिर्फ इतना ही पता चल पाया है कि यह मूर्ति ईशा के तीसरी सदी पूर्व मौर्यकाल में गढ़ी गयी थी ! यह प्रतिमा किसी यक्षिणी का हो या किसी ग्रामीण स्त्री का लेकिन इतना तो पता चलता है कि उस समय का भारतीय समाज सौन्दर्य और कला के प्रति गहरा अनुराग रखता था !

Wednesday, June 16, 2010

पानी बिन पटना

                                                                      जल दुर्ग के रूप में इतिहास के पन्नो में विख्यात पुरुस्पुर कि धरती आज पानी कि बूंद बूंद के लिए तड़प रही ही ! राजधानी कि दिनोदिन बढती आबादी और जल पार्षद के सिमटते जल संसाधन ने राजधानी वासियों के सामने पेयजल कि ऐसी समस्या पैदा कर दी है कि , जो फिलहाल खत्म होता नजर नहीं आ रहा है ! वर्त्तमान में जल परिषद् महज ८५ पम्पो के सहारे राजधानी के २३ लाख आबादी को पानी दे रही है ! जो एक कहावत को चरितार्थ करती है !
                                                                     "उट के मुह में जीरा का फोरन"
                                                                                                                 एक सर्वेछान के अनुशार शहरी  आबादी के लिये प्रति व्यक्ति को कम से कम १३५ लीटर पानी कि प्रतिदिन आवश्यकता होती है ! लेकिन वर्त्तमान में परिषद के तरफ से प्रतिदिन महज दो लीटर पानी ही प्रत्येक व्यक्ति को मिल पा रही है ! वो भी शुद्ध नहीं ! शुद्ध मिले भी तो कैसे ! वर्षो पहले बिछ्यी गयी पिप लीनो में जगह जगह से रिसाव आने के कारण कई मुहल्लों के लोग बीमारियों से ग्रषित है ! बावजूद इसके गंदे पानी पिने को मजबूर है ! जल परिषद के अनुसार वर्त्तमान में शहर में ७०० किलोमीटर 
में पाइपे लाइन बिछायी गयी है ! लेकिन ५०० किलोमीटर पाइपे लाइन कि स्थिति काफी जर्जर है !
                                                                          इस संबंध में पटना के जल पर्षेद के अध्यक्ष अपना दलील देते हुआ कहते है कि वर्त्तमान समय में हम ४१ मलद पानी कि आपूर्ति कर रहे है ! साथ ही सभी लोगो तक पानी पहुचाने के लिये प्रत्येक वाड में पञ्च चापाकल लगाने का अभियान शुरू कर दिया गया है ! यानि कि आगामी एक माह के अन्दर २८५ चापाकल राजधानी में लगा दिया गया जायेगा ! इसके अलावा उनोहने यह भी कहा कि शहर में विश्वास बोर्ड , हुडको एवं केंद्रीय भूगर्भ जल आयोग के सहयोग से करीब २२ बोरिंग लगाने कि भी योजना है ! जिससे एक हद तक राजधानी वासियों को शुद्ध जल आपूर्ति हो जाएगी !
                                                               लेकिन सुरसा के तरह एक सवाल मुह बाये खरी है कि क्या इन योजनाओ का कार्यान्वयन हो पायगी , इसके लिए ढेर  सारे पैसे कहा से  आएंगे ! और अगर पैसे आ भी गए तो इस गर्मी तक इन योजनओ को अमली जमा पहनाया जा सकेगा ! शायद नहीं ! हलाकि बारहवे वित् अयोग़ से जल परिषद ने श्री आबादी को शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए ३०० करोर रूपये कि मांग कि गयी है ! लेकिन इन पैसो का अबतक स्वकृति नहीं मिल पाई है ! इसी वजह से अबतक काम भी शुरू नहीं हो पाया है ! और राजधानी के लोग प्रदूषित पानी पिने को मजबूर है , और न जाने कब तक प्रदुसित पानी पीकर लोग तड़पते रहेगे !
                                                                दूसरी तरफ पाटलिपुत्रा जिस गंगा कि गोद में बैठी है वह भी शायद यहाँ के निवासियों से रूठ गयी है ! तभी तो दिनोदिन वह सूखती ही जा रही है , हलाकि इसे वापस लेन के लिये कई योजनाओ को चलाया गया कुछ तो चल भी रहे है ! पर शायद गंगा माँ अपने बच्चो से इतना जायदा रूठ गयी है कि कुसुमपुर कि इस पाबन धरती को छोड़ अन्यंत्र अपना वास  बनाने के लिए बढ़ रही है ! शायद इसका वजह भी हम ही है ! हमने गंगा को इतना जायदा प्रदुसित कर दिया है कि वह चाह कर भी यहाँ रहना नहीं चाहती है ! ! गंगा के नजदीक रहने से राजधानी के लोगो को एक हद तक पानी कि आपूर्ति हो जाती थी ! लेकिन इससे स्तर में लगातार आ रहे गिरावट के वजह से वह भी संभब नहीं हो पा रह है ! और लोग पानी के एक एक बूंद के लिए तरस रहे है ! कई मोहल्ले तो ऐसे है जहा कई दिनों तक पानी आता ही नहीं है , लोग पानी जैसे बुनियादी सुबिधा के लिए आये दिन सड़क पर उतर आते है ! और प्रशासन के अस्वासन के बाद इन्हें अपना लड़ाई तत्काल खत्म करना पड़ता है लेकिन नतीजा वाही धक् के तिन पात!
                                                       देश कि स्वतंत्रता में अहम् भूमिका निभाने वाले इस राज्य कि हालत महज आजादी के ६० बर्षो बाद ही ऐसा हो जायेगा , आजादी के दिवानो ने कभी ऐसा सोचा भी नहीं होगा ! इन ६० वर्षो में राज्य के सिहासन  पर कई पटियों के सरदार ने अपना आसन जमाया ! लेकिन किसी ने भी राज्य के विकास ,राज्य के लोगो के लिए पानी जैसी बुनियादी सुबिधा के बारे में नहीं सोचा ! शायद यही कारण है कि राज्य के लोग पानी कि बूंद बूंद के लिए तड़प रहे है ! क्या आज भी हमे अपनी बुनियादी सुबिधा के लिए सड़क पर उतरना पड़ेगा , क्या आज भी लोग पानी बिन प्यासे मरते रहेगे ! इस सवाल का जवाब पूरा पाटलिपुत्रा के लोग मांग रहा है ! लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं है !          

Monday, June 14, 2010

काकोलत कि सफ़र

                                                               पाटलिपुत्र यानि आधुनिक पटना से करीब ८० किलोमीटर दक्षिण में बसा जिला नालंदा को अपने ज्ञान और वैभव के लिए प्राचीन कल से ही जाना जाता है ! संस्कृत के "नालम+दा" से बना है , नालंदा ! नालम अर्थात " कमल " यानि गायन का प्रतिक ! " दा " अर्थात देने वाला ! दोनों ही अपने स्थान पर सत्य है ! एक प्राचीन मान्यता है कि पूर्व कल में यहाँ अनेके सरोवर थे , जिनमे कमल होते थे ! इसी कारण इसका नाम नालंदा पड़ा ! विधुआनो के पावन इस धरती से गुजरा तो स्वतः ही मन में लिखने कि जिज्ञासा जग उठा ! सो लिखने बैठ गया ! दरअसल हमरा पड़ाव था नवादा जिला स्थित " ककोलत जलप्रपात " ! जहा मै अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा था ! पर्यटकों के लिए चिरस्मर्निये मन जाने वाला यह स्थल अपने खूबसूरती से बरबस ही लोगो को अपने ओर आकर्षित करता है ! कोडरमा के पठार से उतरते जलप्रपात कि निर्मल जलधारा जब १५० फिट कि उचाई से जमीन पर गिरती है तो मानो शंकर कि जटा से गंगा निकली हो ! स्वच्छ , शीतल पवन और दुखो को हरने वाली जलधारा में स्नान करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है , ऐसा मर्कंदाये पुराण में लिखा गया है ! जब हमने इस मनोहर दृश्य को देखा तो कदम स्वतः ही उस पानी कि ओर चल पड़े , मानो वह हमे अपनी ओर आकर्षित कर रही हो ! ओर हम सभी उसके आकर्षण में इसकदर खो गए कि समय का पता ही नहीं चला ! काकोलत के निर्मल जल में हम घंटो अटखेलिया करते रहे !
                                                        हमारे इस सफ़र कि शरुआत पटना से हुई ! मै अपने ग्रुप के साथ काकोलत जाने का मन बनाया ! जाना तय हुआ 17 जुलाई को ! 17 जुलाई कि सुबह जब नींद खुली तो घडी 5 बजा रही थी ! मै उठा और दरबाजा खोलकर टेरिस पर आया तो इन्द्रराज ने मेरा स्वागत बरसात कि चंद बुँदे चेहरे पर बिखेर कर किया ! चेहरे पर बरसात कि बूंद पड़ते ही मै उस कमल कि तरह खिल उठा जो पानी कि खूबसूरती को बढ़ा देती है ! लेकिन तुरंत ही उस डाली के तरह मुरझा भी गया , जब कोई कमल तोड़ लेता है ! कारण इन्द्रराज इस कदर बरस रहे थे कि मानो हमारे खुशियों पर पानी फेरना चाहते हो ! पर हम भी कहा मानने वाले थे सो अन्तः हमारा उत्साह देखकर गजराज को ही शांत होना पड़ा ! और हम अपने ग्रुप के आठ(८) सदस्यों के साथ अपना सफ़र शुरू किया ! अब मै अपने ग्रुप के सदस्यों से परिचय करा दू !
                                                   सबसे पहले हमारे  ग्रुप कि लीडर दिव्या ! जिसके घर से इस सफ़र कि शुरुआत हुई थी ! लीडर इसलिए कि उसमे सभी को साथ लेकर चलने कि छमता जो है ! इसके अलावा दिल कि सवच्छ , पावन और निर्मल ,काकोलत कि जलप्रपात से गिरती जलधारा कि तरह , जो गिरकर भी अपनी निर्मलता नहीं खोती, बल्कि दुसरे को शीतल कर जाती है ! इसी कारण हम सभी कि चहेती ! लेकिन इन सबसे पड़े अधिक भाभुकता ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है ! हर कोई को अपना समझने के कारण कभी कभी आहात भी होती है जिसे वह अपने खुबसूरत नयनो से आसू कि चंद बुँदे टपका कर भुला देती है ! अपने इन सब अच्छाइयो के कारण वह हमरे ग्रुप कि चहेती है !
                            ऐसा ही एक चेहरा हमारे ग्रुप में और है , कीर्ति सौरभ ! अपने नाम के अर्थो को सही चरितार्थ करता कीर्ति पर तो हम सभी को नाज है ! हो भी क्यों नहीं , हम सभी कि जन जो उसमे बसती है ! दिल का सच्चा कीर्ति अपना नफा -नुकसान देखे बिना दुसरो कि मदद को तत्पर रहता है !अपने नाम का कीर्ति पताका फहराने वाला कीर्ति कि यही खुबिया उसे दुसरो से अलग करती है !
                                तीसरा सदस्य राजेश ! जिसके बारे में जितना लिखा जाय कम होगा ! हसमुख स्वभाब वाला राजेश तो हमारे ग्रुप कि मुस्कुराहट है ! हमेशा चेहरे पर मधुर मुस्कान बिखेरने वाला राजेश दुसरो को भी हँसाता रहता है ! अगर ये हमारे ग्रुप में न हो तो ग्रुप उस विधवा स्त्री कि तरह हो जाती है , जिसके मांग का सिंदूर और कलायियो कि चूड़िया तोड़ दी जाती है लेकिन इसके आते ही ग्रुप एक सुहागिन कि तरह चमक उठता है, जो अपनी मांग कि चमकती सिंदूर और हाथ कि चूड़िया खनकाती रहती है !
                                                                                      ग्रुप का चौथा सदस्य अनुराग ! हमेशा दुसरो से अलग दिखने कि कोशिश करने वाला अनुराग वास्तव में है भी कुछ अलग ! अलग करने और अलग दिखने कि चाह कभी कभी दुसरो को काफी दुखी कर जटा है ! पर दिल का बहुत अच्छा ,बहुत प्यारा ,किसी को भी उस पर प्यार आ जाय !
         ग्रुप कि पंचिवी सदस्य के बारे में थोडा बता दू ! हलाकि ग्रुप में आये उसे जायदा वक्त नहीं हुआ है !पर चंद ही दिनों में उसने पुरे ग्रुप में अपनी पैठ जमा ली है! सुन्दर नैन नक्श वाली इस सदस्या का नाम मनीषा है ! मनीषा जितनी सुंदर दिखती है उससे कही जायदा दिल कि सुंदर है ! किसी पर तुरंत भरोसा करने वाली मनीषा बोलती कम 
सुनती जायदा है ! इसका यह स्वभाव इसके सुन्दरता को और बढ़ा देता है !जिसके कारण हर कोई इससे तुरंत ही प्यार करने लग जाते है !
                            चंचल , बडबोली और विंदास स्वभाव कि तुलिका हमरे ग्रुप कि छठी सदस्या है ! जो नाराज तो बात बात पर हो जाती है ,पर चंद मिनटों के बाद ही नाराजगी को ऐसे भुला जाती है , मोनो कुछ हुआ ही न हो !
हमेशा मस्त रहने वाली तुलिका कि यही कोशिश रहती है कि उसके आस पास के लोग भी उसी कि तरह बिंदास रहे !
       तुलिका कि तरह ही विंदास , चुलबुला सा प्यारा लड़का है अमित ! जो हमारे ग्रुप का सातवा सदस्य है ! पर वह छोटी छोटी बातो पर भी अपनी नाराजगी जाहिर कर देता है ! लेकिन अपनी गलती का एहसास होते ही तुरंत मन भी जटा है ,और सभी को मन भी लेता है !
                                                                 अपने ग्रुप का आठवा और अंतिम सदस्य मै स्वय ! अपने बारे में क्या लिखू , बस इन सातों के मेल से बना माला का एक मोती ! ये है हमारा ग्रुप जिसमे सब एक दुसरे से जुड़े है ! 
                                                इन्ही आठो के साथ हमारा सफ़र शुरू हुआ ! और फिर शुरू हुआ कभी  न ख़तम होने वाले मौज मस्ती का दौड़ ! एक ऐसा दौड़ जो काकोलत से लौटकर ही एक यादगार के रूप में खत्म होता ! लेकिन शायद हमे अपनी ही नज़र लग गयी ! ऐसा हुआ फतुहा पार करते ही ! जब हमारे टीम के एक सदस्य कि बाते दुसरे सदस्य को बुरी लग गयी ! उसने अपनी नाराजगी तुरंत जाहिर कर दी ! इस कारण सभी का मन उदास हो उठा ! उदासी के इस आलम के कारण सभी ने पटना लौटने का मन बना लिया ! लेकिन थोड़ी सी मन - मनौवल के दौड़ के बाद हम सभी फिर एक होकर मौज मस्ती के सफ़र पर चल पड़े ! पूरा रास्ता हम नाचते गाते रहे और किस  तरह काकोलत पहुच गए पता ही नहीं चला ! मानो चंद घंटे पहले ही तो हमने अपना सफ़र शुरू किया था ! लेकिन जैसे ही काकोलत जलप्रपात से गिरती निर्मल जलधारा पर नजर पड़ी तो लगा हमे इतनी देर क्यों लगा !हमे औए जल्दी आना चहिये था ! एक ऐसा मनोहर दृश्य जो मान को पूरी तरह शांत कर रहा था ! करीब १५० फिट कि उचाई से गिरती निर्मल जल धरा शंकर कि जटा से निकलती गंगा कि याद तजा कर रही थी ! जिसे हमने इतिहास के पन्नो में पढ़ा था , या टीवी सीरियलों में देखा था ! काकोलत के पानी में इतना आकर्षण था कि सभी के कदम उस ओर खुद ही चल पड़े ! यह सब हमलोगों के साथ ही नहीं हो रहा था ! वास्तव में वहा का पानी इतना निर्मल है कि लोगो के कदम स्वतः ही उस ओर चल पड़ते है !
                                                                                           हुआ भी कुछ ऐसा ही पानी कि निर्मलता को देख सबसे पहले कदम बढ़ने वालो में अनुराग था ! काकोलत के मुहाने पर पहुचते ही अनुराग अपना सबकुछ पटक पानी में कूद पड़ा ! अनुराग के उपर सवच्छ और निर्मल पानी को गिरता देख मनीषा और मै भी उस जलधारा में अटखेलिया करने पहुच गए ! उसके बाद राजेश कीर्ति पंहुचा ! फिर तो दिव्या और तुलिका कहा पीछे रहने वालो में से थी ! वह दिनों भी पहुच गयी पानी के उस कुंड में जो विशेष रूप से पर्यटकों के लिए बनाया गया था ! फिर तो हम आठो ने पानी में ऐसा धमाल मचाया कि आस पास के पर्यटक हमे ही देख रहे थे और हमारे बदमाशियों  पर मंद मंद मुस्करा रहे थे ! पानी के अन्दर अटखेलियो करते हमे काफी समय बीत गया ! इस दौरान हमारा मन तो पानी से निकलने का नहीं कर रहा था , पर हमे पटना वापस भी आना था , सो हम सभी करीब  दो घंटे पानी में रहने  के बाद
बाहर निकले ! फिर तैयार होकर खाने पर इसकदर टूट पड़े मानो बर्षो से भूखे हो ! खाने के बाद हम सभी काकोलत कि रमणीक दृश्य को देख आहे भरने लगे ! हमे यहाँ से लौटने का मान तो नही कर रहा था ! पर मज़बूरी थी , सो हम सभी फिर सवार हुए अपने गारी पर ! शुरू में रास्ता खराब होने के वजह से हमारा मौज मस्ती का दौड़ थोडा धीमी रहा , पर रास्ता ठीक होते ही शुरू हो गया एक ऐसा दौड़ जिसमे सभी ,सभी चीज भुलाकर एक दुसरे में इसकदर खो गए मानो , हम सभी आठ जिस्म और एक जान हो ! रास्ते भर हमारा सफ़र नाचते गाते बिता ! कभी राजेश तो कभी कीर्ति कभी मै तो कभी अनुराग या फिर मनीषा ! लेकिन हम पांचो के अलाबा दिव्या , तुलिका और अमित पर ऐसा नशा छाया कि तीनो पुरे रास्ते झूमते और सभी को झुमाते आये !
                                                                                                            इस तरह करीब ९ बजे पटना आकर हमारा सफ़र समाप्त हुआ ! एक ऐसा सफ़र जो पूरी तरह से मौज मस्ती से भाता था ! एक ऐसा सफ़र जो सभी के लिये यादगार साबित हुआ , एक ऐसा सफ़र जिसमे सिर्फ प्यार ही प्यार था ! फिर हम सभी एक नये सफ़र का प्लान के अपने अपने घर के लिये रवाना हो गए ! और अगले दिन ऑफिस पहुचकर सफ़र कि चर्चा में पुरे दिन मशगुल रहे !

Friday, June 04, 2010

गाथा सिख धर्म का

                                                पटना बिहार कि राजधानी होने के कारण ही महान नहीं है !बल्कि धार्मिक और एतिहासिक होने के कारण भी महत्वपूर्ण है ! धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसकी महता सिख धर्म के दसवे और अंतिम गुरु गोविन्द सिंह कि जन्मस्थली होने के कारण भी है ! जिसका वर्तमान नाम तख्त श्रीहरिमंदिर जी पटना साहिब है ! गुरु गोविन्द सिंह कि आत्मकथा विचित्र नाटक में भी पटना कि महता को दर्शाया गया है !इसके अलावे गायघाट , गोविन्दघात , गुरु का बाग , हांड़ी साहब मानो सिखों के लिए पवन धाम है !
                           पटना के इस पावन धरती को सब से पहले सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी ने पवित्र क्या था !जब उनोहोने पश्चिम दरवाजा से पटना के अन्दर प्रवेश किये और भक्त जैसमल को मुक्ति का मार्ग बताया ! ऐसा कहा जाता है कि जैसमल पूर्व के विसंभारपुर और आधुनिक गायघाट में रहा करता था !जब गुरुनानक देव जी यहाँ आये तो ,जैसामल ने उन्हें अपनी मुक्ति का आग्रह किया ! लेकिन गुरु ने कहा कि अभी तुम्हारा मुक्ति का समय नहीं आया है ! लेकिन उसकी बढती उम्र को देख गुरु ने उसे एक कुंद बनवाने का परामर्श देकर कहा कि वे गंगाजी से आग्रह करेगे कि गाय रूप में कुंड के पास आकर अपने मुख से तुम्हे स्नान करा दिया करे ! उसके बाद से गंगाजी प्रतिदिन गाय रूप में आकर जैसामल को स्नान कराने लगी ! तभी से विसंभारपुर गॉव का नाम गाय घाट हो गया ! साथ ही गुरु नानक जैसामल को जाते जाते गुरु तेगबहादुर दुआरा मुक्ति का मार्ग भी बता गए !
                               इसके बाद जैसामल गुरु तेग बहादुर का इंतजार करने लगे ! और एक दिन जब गुरु आये तो उनके शिष्यों ने जैसामल को गुरु कि आने कि खबर दी तो जैसामल ने कहा कि गुरु है तो दरबाजे खोलने कि क्या आवश्यकता है ! वे खुद अन्दर आ जाये ! तब गुरु एक खिड़की से अपने परिवार ,संगत और घोड़ा सहित छोटा रूप कर कुटी में प्रवेश किया और जैसामल को मुक्ति प्रदान किया ! भक्त जैसामल का अंतिम संस्कार कर गुरु तेग बहादुर ने अपने पुराने घर को नये सिरे से निर्माण का कार्य शुरू  किया ! लेकिन निर्माण के दौरान पहले से मौजूद दो थम्बो में अजीब सा चमत्कार शुरू हो गया ! जब थम्बो को क्षत के निचे खड़ा किया जाता तो ये बड़े हो जाते ,और जब काटने के लिए बाहर निकाले जाते तो ये छोटे हो जाते ! तब गुरु ने भवन निर्माण कार्य बंद करवाकर कहा कि समय आने पर सिख संगत इस कार्य को पूरा करेगे ! इसके साथ ही गुरु तेग बहादुर ने दोनों थम्बो को वर दिया कि जो भी इन थम्बो को गला लगाएगा , उसको मनोवांक्षित फल मिलेगा !
                                         समय परिवर्तन के साथ इस विशाल गुरुदुआरे का निर्माण किया गया ,जिसे गायघाट या बड़ी संगत के नाम से जाना जाता है ! इस गुरुदुआरे में आज भी दी चमत्कारी थम्ब , छोटी खिड़की , कुंड , जहा जैसामल को गंगाजी गाय के रूप में स्नान कराती थी ,अभी भी मौजूद है !इसके अलावा वह खुटा ,हरसिंगार फूल के पेड़ के रूप में मौजूद है ,जिसमे गुरु ने अपना घोर बांधा था !गुरु के यादो को संजोये बड़ी संगत अपनी सुन्दरता से तो लोगो को अपमी ओर आकर्षित करती ही है , पर लोग इसे देखने के साथ अपनी मनोकामना पूर्ण का स्थान भी मानते है !
                      गुरु तेग बहादुर जी गुरु नानक देव के बाद पहले गुरु थे जिन्होंने पंजाब के बाहर धर्म प्रचार किया !१६६६ इसवी के आरम्भ में पटना आये तो उनके साथ उनकी माता नानकी जी, धर्मपत्नी , भ्राता कृपाल्चंद जी और सिख दरवारी थे ! पटना साहिब आकर जैसामल को मुक्ति देकर रजा विशन सिंह के साथ आसाम चले गए !और अपने परिवार को पटना के गायघाट में छोड़ दिया सालिस राय जो कि गुरुनानक  का शिष्य  था ,को जब पता  चला कि गुरु कापरिवार पटना में है तो उन्होंने अपने  अपने घर खाने  पर बुलाया  और तभी  से माता गुजरी सालिस रायके धर्मशाला  में निवास करने लगी  जहा उस महान पुण्य आत्मा  का जन्म हुआ जिन्हें  लोग गुरु गिविंद  सिंह के नाम से जानते  है !आज यह  स्थान तख़्त श्री हरमंदिर जी के  नाम से जाना जाता है ! यह स्थान सिख धर्माब्लाम्बियो   के पाच तख्तो में से दूसरा तख़्त के रूप में से जाना जाता है ! सिख शांति का केंद्र इस ईमारत को संगत भी कहा जाता है !सिख कौम ने इसे तीर्थ बना दिया है जो सिखों के लिए सत्कार तथा नम्रता , सरधा का प्रतिक है !
                                    बाल्यकाल के ७ बर्ष के दौरान गुरु गोविन्द सिंह ने कई लीलाए कि जिसका गवाह यहाँ का जरा जरा है! कहते है कि असाम के रजा ने बाल प्रीतम को हीरे जडित दो सोने के कंगन भेट किये थे ! एक दिन गंगा जी करे घाट पर खेलते हुए प्रीतम ने कंगन नदी में फेक दिया !जब माता ने पूछा  कंगन कहा है , तो दूसरा कंगन नदी में फेकते हुए प्रीतम ने कहा वहा फेक दिया है ! इसलिए घाट का नाम कंगन घाट या गोविन्द घाट कह जाता है ! जो कि सिखों के लिए महत्वपूर्ण  दर्शनीय स्थल में से एक है !  
                                                              तख़्त हरमंदिर के समीप ही बाल लीला गुरुदुरा या मौनी संगत है ! यह स्थान भी महत्वपूर्ण एवं दर्शानिया है ! कहा जाता है कि यह स्थान पहले रजा फतहचंद का महल था ! फतहचंद  कि रानी मैनी को कोई संतान नहीं था ! इसी कारण गोविन्द सिंह मैनी को माता कहा करते थे ! और मैनी भी बाल प्रीतम को संतान के रूप में ही मानती थी ! गुरु गोविन्द सिंह ने अपने संगत के साथ रानी मैनी के यहाँ पूरी और घुघुनी खाई तथा वरदान दिया कि इस स्थान पर पूरी और घुघनी नित प्रतिदिन वितरित किया जायेगा तो मै बच्चो के रूप में आकर भोग लगाया करुगा ! तभी से यह परम्परा चली आ रही है ! और लोग पूरी -घुघनी का भोग लगा गोविन्द सिंह में अपना श्रधा  सुमन अर्पित करते है ! 
                                                                                  तख़्त श्री हरमंदिर के अन्दर यह कुआ माता गुजरी दुआरा शापित कुआ है ! जिसका पानी खारा है एसी मान्यता है कि माता गुजरी ने बाल प्रीतम से तंग आकर कुआ को शापित कर दिया ! माता गुजरी दुआरा शापित कुआ आज लोगो के लिए दर्शानिये  हो गयी है ! यहाँ लोग अपना माथा टेक माता का आशीर्वाद ग्रहण करती है ! कहा जाता है कि इस कुआ पर आस पड़ोस कि औरते पानी भरा करती थी ! गोविन्द सिंह जी औरतो का घर गुलेल से फोड़ दिया करते थे ! जब औरते माता से शिकायत कि तो माता ने मिटटी जगह पीतल का घड़ा दे दिया ! फिर भी गोविन्द सिंह ने तीर से उसमे छेद कर दिया करते थे ! वार वार बी शिकायत से तंग आकर माता ने पानी को खारा हो कने का शाप दे दिया ! ताकि पानी पिने लायक ही नहीं न रहे ! लेकिन माँ शाप भी बच्चो के लिए आशीर्वाद ही होता है ! इसी कारण यहाँ लोग माथा टेक माँ का आशीर्वाद ग्रहण करते है! इसके अलावे भी गोविन्द सिंह ने अपने नन्हे-नन्हे पैरो कि अमित छाप से न जाने कितने लीलाए कि जो सिखों के लिए दर्शानिये है !
                                                           तख़्त श्री हरमंदिर से करीब २ किलोमीटर कि दुरी पर स्थित है गुरु का बाग ! को कि सिखों का प्रमुख दर्शानिये स्थलों में से एक है ! कभी काजियो का यह बाग पूर्ण रूपेण सुखा पड़ा था , लीकें गुरु तेग बहादुर आसाम से वापस पटना आये तो उसी स्थान पर उतरे ! गुरु का चरण स्पर्श मात्र से ही बाग हरा भरा हो गया ! तभी काजी ने इस बाघ को गुरु के चरणों में समर्पित केर दिया , तभी से यह बाग गुरु का बाग कहा जाता है!
                            पटना के पूर्व छोड़ पर हरमंदिर स्थित है तो पशिम छोड़ पर दानापुर में गुरुदुअरा हांड़ी साहब स्थित है ! जो सिख धर्मावलम्बियों के लिए काफी महत्व रखता है ! एसी मान्यता है कि गुरु गोविन्द सिंह जी पाच बर्ष कि अवस्था में पटना छोड़ आनंदपुर जा रहे थे तब अपने संगत के साथ यहाँ ठहरे थे ! जहा माता जस्नी ने हांड़ी में खिचड़ी पकाकर गोविन्द सिंह जी को खिलया था ! माता जसनी जब हांड़ी भर खिचड़ी गुरु गोविन्द सिंह के पास लायी तो गुरु ने पूरी संगत में उसे परोसने को कहा , जब माता जसनी कम खिचड़ी कि बात सोचकर चिंचित हुई तो गुरु ने वरदान दिया कि इस हांड़ी से जितनी चाहो खिचड़ी निकालो हांड़ी भरी रहेगी ! यह चमत्कार देख माता जसनी ने अपने घर को धर्मशाला में परिवर्तित कर दिया और जीवन भर उसी हांड़ी में खिचड़ी बनाकर सांगतो को खिलाती रही !   
                     सांस्कृतिक धरोहरों का शहर पटना गुरु के चरण कमल परते ही धार्मिक केंद्र बन गया !जो कि न सिर्फ सिख धर्म्वालाम्बियो के लिए पवित्र स्थल बना बल्कि अन्य धार्मिक समुदाय के लिए भी पवित्र , पावन और  दर्शानिये है !                           




                         
                                                                                 







Wednesday, June 02, 2010

बाढ़

                                        आमूमन पानी के साथ अटखेली करने वाले उत्तर विहार के लोगो ने जब चारो तरफ पानी ही पानी देखा तो उनके समझ में नहीं आया कि यह पानी का फैला सैलाब है या नदियों के फैलाब से रचा समंदर ! वैसे उतर बिहार के लोग पानी से नहीं डरते !पानी के साथ उन्हें जीना आता है ! सच पूछिए तो थोडा बहुत पानी उन्हें अच्छी लगती है ! बागमती में जब उफान आती है यो साथ आती है बहुत सारी उपजाऊ मिटटी !जिसके चलते यहाँ के लोग बढ़ के बाद अच्छी फसल उपजा लेते है ! यही इनके जीने का सहारा होता है ! मगर चंद दिन पहले आयी विनाशकारी बढ़ ने तो आपने साथ उपजाऊ मिटटी नहीं लायी पर हँ अपने साथ तबाही ,बर्वादी का ऐसा मंजर लेकर आयी, जिससे अबतक उतर बिहार के लोग उबड़ नहीं पाये है !
                                तबाही के इस मंजर ने न जाने कितने सुहागिनों कि मांग सुनी कर दी ,न जाने कितने माताओ कि ममता का गला घोट दिया, और न जाने कितने भाइयो कि कलाई सुने कर दी ! यु तो उतर बिहार में हर बर्ष बाढ़ आती है और तबाही भी होती है मगर इस बार जो तबाही हुई है न तो पहले कभी हुई थी और भगवन करे क़ी कभी हो भी नहीं ! तबाही के इस मंजर को प्रकिर्ती ने नहीं मनुष्य क़ी गुस्ताखियो ने रचा है ! आजादी के बाद क़ी सभी सरकारे ने क़ी है नदियों क़ी रह रोकने क़ी गुस्ताखी ! उसी का नतीजा है यह आपदा !
                                      ये नदिया हिमालय से पानी लाती है तो उसे आपनी सब से बड़ी बहन गंगा में मिलकर समुन्दर तक पहुचाने क़ी रह भी बनायीं थी ! फिर किस बिल्ली ने काटे नदियों के रास्ते! सड़के बनाकर ,रेल लाइन बिछाकर ,हम ने रोके नदियों क़ी राहें और उन्हें कैद करना चाहा ,ऊँचे ऊँचे तटबंधो में !हर साल टूटने के लिए ही क्यों बनायीं जाती है बांध ! क्यों खर्च किये गए अरबो रुपये नदी परियोजनाओ पर !जब उनका परिणाम यही होना था ! मौत से बड़ी है भूख तो भूख से भी बड़े है ये सवाल ! इसका जबाब किसी सरकार के पास नहीं है ६० बर्ष पुराने जनतंत्र को देना है अबतक किसका पेट भरा है इन परियोजनाओ से !
                                                             जब पहली बार मनुष्यों का जथा वैदिक सभ्यता का अलोक लेकर आया था ,तब इस इलाके में तो पानी ने कितनी शालीनता दी थी ,उसे अपनी उपस्तिथि मात्र से ! वह शायद जनक का कबीला था ! कहते है एकबार रजा जनक के मुह से यज्ञ क़ी अगनी बाहर निकल गयी ! फिर तो वह सबकुछ को जलाते हुए अपने काबिले के साथ उसके पीछे पीछे भागे ! चारोतरफ सुखा था ,और सबकुछ जलकर रख होता जा रहा था ! तभी सदानीरा यानि आज क़ी गंडक नदी में पानी मिला ! इतना गहरा पानी क़ी अगनी उसमे समाकर ठंडी पड़ गयी !जनक ने इस नदी को पर किया और एक नये प्रदेश ,एक नयी संस्कृति क़ी नीव डाली !
                       कितना शांत सुन्दर और पवित्र जल था .सदानीरा का ! अब कैसा गन्दला ,उदंड और विषैला हो गया है !जो अपने अन्दर न जाने कितने बेगुनाहों को समां ले गयी !किसने बनाया इसे इतना विनाशकारी , वो जो शताब्दियों से नदियों के साथ जीते आ राहें है !या वो जो नदी सभ्यता के नाम पर नदियों को रौद राहें है !पूरा उतर बिहार आज इस सवाल का जवाब मांग रहा है ! 



Tuesday, June 01, 2010

सगाई की सतरंगी सफ़र

यौवन के दहकते दलहिज पर कदम रखते ही आँखों में तैरने लगते है, भावी जीवन साथी की कल्पना के इन्द्रधनुषी रंग ! यह रंग तब जायदा रंगीन हो जाता है जब पूरी होती है सगाई की रस्म ! जी हँ सगाई की ही रस्म से तो जिंदगी में एक संतुलन की शुरुआत होती है , जो आने वाले दिनों में एक दुसरे के दिलो को छुने वाली हर सुख दुःख का संतुलित बटवारा कर जीवन के बहार को बनाये रखता है !
सगाई जिसे कही ढाका, कही रोका, कही आशीर्वाद या नीरबंध तो, कही मंगनी भी कहा जाता है ! एक ऐसा रिवाज है जिसके पूरा होने के बाद नवयौवन की जिंदगी जज्बातों से भर जाती है ! एक ऐसा जज्बात जो बात बात में सिर्फ और सिर्फ अपने होने वाले सजाना के लिए बजना चाहता है !सगाई के बाद संसार रूपी सागर में दाम्पत्य के नौका में बैठकर चलने की खाव्हिश लिए सुर्खे गुलाबी हो चुके चेहरे और शर्मो हया में डूबते उतरते आखो में रस्म के महत्व और सवेदनशीलता को बाया करती है ! एक ही पल में दो अनजान युवा दिल रस्म की रस्सी में बंध कर एक दूजे के लिया धरकने लगते है !पिया के पहली छुअन वाला यह खुबसूरत पल नये जोड़ो के जेहन में एक ऐसा यादगार लम्हा बन जाता है जो कभी इन्हें तनहा नहीं रहने देता है इस रस्म में नए जोड़ो के दौओरा एक दुसरे के अनामिका में अंगूठी पहनायी जाती है! अनामिका में अंगूठी पहनाने का खास मकसद यह है की अनामिका की नसे सीधे दिल से जुडी रहती है ,ये बाते कहती है जर्नलिजम की दूसरी बर्षे की छात्रा रूपा !जिसकी सगाई अभी अभी हुई है ! वही पटना विशविधाल्या की छात्रा अनामिका कहती है की सगाई और शादी के बीच कुछ समय मिलना चाहिए ताकि दोनों एक दुसरे को समझ सके !
लेकिन सगाई की सतरंगी अंगूठी अपने अन्दर एक सुनहरा इतिहास छुपा कर रखी है सन १४७७ इसबी में सगाई की अंगूठी पहना का शादी का प्रस्ताव रखने की परम्परा का जनम हुआ !सब से पहले आस्ट्रिया के अर्केदुके मक्सिमिल्याने ने मैरी ऑफ़ बरगंडी को हीरे की अंगूठी भेट की थी ! जिसे वह शादी के प्रतिक के रूप में दिया था !लेकिन बदलते वक्त के साथ आज यह फैशन का रूप ले लिया ,पर नहीं बदला तो इसका सवरूप कयोकी आज भले ही यह फैशन बन गया हो पर आज भी लोग इसे शादी पक्की होने का प्रतिक ही मानते है!
सगाई की रस्म के अतीत में झाके तो पायेगे की पहले घर के बड़े बुजुर्गे आपस में चाँदी का रूपया बदलकर शादी तय कर लेते थे ,जिसे लोग सगाई कहते थे ! इस रस्म के बाद भी लड़का लड़की एक दुसरे को न के बरावर ही देख पते थे ! लेकिन समय के साथ सगाई के रस्म में भी काफी परिवर्तन हुआ है !
७० के दशक के आसपास सगाई की रस्म के दौर में कुछ बदलाव आया !यह वह दौर था जिसमे चाय की ट्रे का महत एकदम से बढ़ गया !चाय के पियाला का सहारा लेकर लड़की कापती कलायो से लड़के को चाय का प्याला देती थी ,और लड़का चाय के पियाला को भूल लड़की की शर्मसे झुकी पलकों में डूब जाता था !फिर सगाई की रस्म पूरी होती थी !
बैंक ऑफिसर विनोद सिन्हा की पत्नी इंदु सिन्हा जो की एक कुशल गिर्हनी है बताती है की हमारी शादी हमारे बड़े भाई साहेब ने तय किया था ! मै आपने होने वाले पति को शादी के बाद ही देख पायी थी ! लेकिन उनके घर वालो को चाय पिलाने वाली रस्म अदायगी मैंने की थी !
पेशे से शिक्षिका विमला जी इस सिलसिला को आगे बढ़ी हुई कहती है ,जब मुझे देखने पहली बार मेरे पति आये थे,और जब मै उनके सामने चाय का पियाला पेश किया था तो हमारे हाथ पैर काप रहे थे !लेकिन इनके सरल सुअभाव ने मेरी सारी डर ही दूर कर दिया ! फिर एक महिना बाद हमरी सगाई हुई !इस दौरान हमारी एक दो बार फ़ोन से बात हुई थी वह भी भाभी के सामने !
लेकिन ८० के दशक तक पहुचते पहुचते और चीजो की तरह संस्कृति ने भी सुपरफास्ट स्पीड से आगे बढ़ाना शुरू कर दिया !शादियों में लव मैरिज का ट्रेंड खुल कर उभरा !और फिर लव कम अरेंज मैरेज का ट्रेंड पोपुलर हो गयी !
मिया बीवीराजी तो किया करेगा काजी वाली सिस्थी से माता पिता का खुलम खुला सामना होने लगा !माहौल और संबंधो में आने वाला इन परिवर्तनों ने सगाई की रस्म को भी प्रभावित किया !
एक प्रतिष्ठित संस्था में कम कर रहे मनीष ने कहा की मेरी शादी लव मैरिज हुआ था ,वो भी मंदिर में इसी करण रशमो की गहराई को हम ठीक से समझ नहीं पाए है! पर हँ इतना जरुर है की पुरखो के दुआर बनाया गया रस्मे रिवाजो की अहमियत अवश्य होती है !शायद इन रशमो के माध्यम से लड़का और लड़की में एक परिपक्ता और समझ आती है !इस बात को हम महसूस करते है !
टिस्को में कार्यरत और लव कम अरेंज मैरेज की गवाह बनी आरती ओझा का कहना है की समय के साथ जब इतना कुछ बदल गया तो रस्म इस बदलाव से कैसे अछुती रह सकती है !वह जमाना लद गया जब लडकिय सगाई के नाम पर नर्वस होती थी !पहले लड़की को शोपीस की तरह बैठा दिया जाता था ,कम बोलना ,नजरे नीची रखना जैसे न जाने कितनी ही हिदायते घर के बड़े देते थे !लेकिन आजकल की लड़किया आपनी सगाई पर बेहिचक मुस्कुराते हुए मिलती है !
वही सिविल सेवा की तैयारी कर रही विभा के अनुसार सगाई की रस्म को लोग धीरे धीरे मिनी मैरेज बनाते जा रहे है !जिसके मस्ती भरी रंग में सभी डूब जाना चाहते है !आज सगाई लड़का और लड़की के लिए सिर्फ दोस्ती का नया मार्ग ही नहीं बनता है ,बल्कि दो परिवारों के बीच के संबंधो को एकजुटता प्रदान करता है !संकोच और संकीर्णता पूरी तरह से इस रस्म के दौरान ख़त्म हो चुकी है !यही करण है की लड़के और लड़की खुद आपनी सगाई में नाचते गाते नजर आते है!
मनीषा जो पेशे से मीडियाकर्मी है सगाई की बात सुनते ही उदास हो जाती है !फिर यादो को बजावाते ताजा करते हुए बताती है की चुकी मैंने अन्तेर्जतिये विवाह किया है !इसलिए हमारी सगाई नहीं हो पायी !लेकिन पति दुओरा पहनाई गई अंगूठी ही मेरे लिए सगाई की अंगूठी थी !जिसका साक्षी सिर्फ हम थे !रस्मो का क्या है वो तो आपके मन और जेब के उपर निर्भर करता है !इससे जायदा जरुरी है रस्मो से जुडी वचनवधता ताकि जीवन की नैया समुन्द्र रूपी संसार में सुखी पूर्वक तैर सके !
इसलिए कहते है की सगाई सिर्फ मौज मस्ती के लिए नहीं बल्कि एक नए जोड़े की गिरहस्ती की पहली शुरुआत भी करता है !यही करण है की सगाई एक महत्पूर्ण रिश्ते की मजबूत बुनियाद तय करती है !
इतने बदलावों के बाबजूद यह आवश्यक है की सगाई की रस्मो के दौरान सभी संबंधो की सीमाओं का धयान रखा जाय क्योकि कभी कभी छोटी सी गलती किसी बड़े मनमुटाव का करण बन सकती है !