Wednesday, June 02, 2010

बाढ़

                                        आमूमन पानी के साथ अटखेली करने वाले उत्तर विहार के लोगो ने जब चारो तरफ पानी ही पानी देखा तो उनके समझ में नहीं आया कि यह पानी का फैला सैलाब है या नदियों के फैलाब से रचा समंदर ! वैसे उतर बिहार के लोग पानी से नहीं डरते !पानी के साथ उन्हें जीना आता है ! सच पूछिए तो थोडा बहुत पानी उन्हें अच्छी लगती है ! बागमती में जब उफान आती है यो साथ आती है बहुत सारी उपजाऊ मिटटी !जिसके चलते यहाँ के लोग बढ़ के बाद अच्छी फसल उपजा लेते है ! यही इनके जीने का सहारा होता है ! मगर चंद दिन पहले आयी विनाशकारी बढ़ ने तो आपने साथ उपजाऊ मिटटी नहीं लायी पर हँ अपने साथ तबाही ,बर्वादी का ऐसा मंजर लेकर आयी, जिससे अबतक उतर बिहार के लोग उबड़ नहीं पाये है !
                                तबाही के इस मंजर ने न जाने कितने सुहागिनों कि मांग सुनी कर दी ,न जाने कितने माताओ कि ममता का गला घोट दिया, और न जाने कितने भाइयो कि कलाई सुने कर दी ! यु तो उतर बिहार में हर बर्ष बाढ़ आती है और तबाही भी होती है मगर इस बार जो तबाही हुई है न तो पहले कभी हुई थी और भगवन करे क़ी कभी हो भी नहीं ! तबाही के इस मंजर को प्रकिर्ती ने नहीं मनुष्य क़ी गुस्ताखियो ने रचा है ! आजादी के बाद क़ी सभी सरकारे ने क़ी है नदियों क़ी रह रोकने क़ी गुस्ताखी ! उसी का नतीजा है यह आपदा !
                                      ये नदिया हिमालय से पानी लाती है तो उसे आपनी सब से बड़ी बहन गंगा में मिलकर समुन्दर तक पहुचाने क़ी रह भी बनायीं थी ! फिर किस बिल्ली ने काटे नदियों के रास्ते! सड़के बनाकर ,रेल लाइन बिछाकर ,हम ने रोके नदियों क़ी राहें और उन्हें कैद करना चाहा ,ऊँचे ऊँचे तटबंधो में !हर साल टूटने के लिए ही क्यों बनायीं जाती है बांध ! क्यों खर्च किये गए अरबो रुपये नदी परियोजनाओ पर !जब उनका परिणाम यही होना था ! मौत से बड़ी है भूख तो भूख से भी बड़े है ये सवाल ! इसका जबाब किसी सरकार के पास नहीं है ६० बर्ष पुराने जनतंत्र को देना है अबतक किसका पेट भरा है इन परियोजनाओ से !
                                                             जब पहली बार मनुष्यों का जथा वैदिक सभ्यता का अलोक लेकर आया था ,तब इस इलाके में तो पानी ने कितनी शालीनता दी थी ,उसे अपनी उपस्तिथि मात्र से ! वह शायद जनक का कबीला था ! कहते है एकबार रजा जनक के मुह से यज्ञ क़ी अगनी बाहर निकल गयी ! फिर तो वह सबकुछ को जलाते हुए अपने काबिले के साथ उसके पीछे पीछे भागे ! चारोतरफ सुखा था ,और सबकुछ जलकर रख होता जा रहा था ! तभी सदानीरा यानि आज क़ी गंडक नदी में पानी मिला ! इतना गहरा पानी क़ी अगनी उसमे समाकर ठंडी पड़ गयी !जनक ने इस नदी को पर किया और एक नये प्रदेश ,एक नयी संस्कृति क़ी नीव डाली !
                       कितना शांत सुन्दर और पवित्र जल था .सदानीरा का ! अब कैसा गन्दला ,उदंड और विषैला हो गया है !जो अपने अन्दर न जाने कितने बेगुनाहों को समां ले गयी !किसने बनाया इसे इतना विनाशकारी , वो जो शताब्दियों से नदियों के साथ जीते आ राहें है !या वो जो नदी सभ्यता के नाम पर नदियों को रौद राहें है !पूरा उतर बिहार आज इस सवाल का जवाब मांग रहा है ! 



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