Wednesday, June 16, 2010

पानी बिन पटना

                                                                      जल दुर्ग के रूप में इतिहास के पन्नो में विख्यात पुरुस्पुर कि धरती आज पानी कि बूंद बूंद के लिए तड़प रही ही ! राजधानी कि दिनोदिन बढती आबादी और जल पार्षद के सिमटते जल संसाधन ने राजधानी वासियों के सामने पेयजल कि ऐसी समस्या पैदा कर दी है कि , जो फिलहाल खत्म होता नजर नहीं आ रहा है ! वर्त्तमान में जल परिषद् महज ८५ पम्पो के सहारे राजधानी के २३ लाख आबादी को पानी दे रही है ! जो एक कहावत को चरितार्थ करती है !
                                                                     "उट के मुह में जीरा का फोरन"
                                                                                                                 एक सर्वेछान के अनुशार शहरी  आबादी के लिये प्रति व्यक्ति को कम से कम १३५ लीटर पानी कि प्रतिदिन आवश्यकता होती है ! लेकिन वर्त्तमान में परिषद के तरफ से प्रतिदिन महज दो लीटर पानी ही प्रत्येक व्यक्ति को मिल पा रही है ! वो भी शुद्ध नहीं ! शुद्ध मिले भी तो कैसे ! वर्षो पहले बिछ्यी गयी पिप लीनो में जगह जगह से रिसाव आने के कारण कई मुहल्लों के लोग बीमारियों से ग्रषित है ! बावजूद इसके गंदे पानी पिने को मजबूर है ! जल परिषद के अनुसार वर्त्तमान में शहर में ७०० किलोमीटर 
में पाइपे लाइन बिछायी गयी है ! लेकिन ५०० किलोमीटर पाइपे लाइन कि स्थिति काफी जर्जर है !
                                                                          इस संबंध में पटना के जल पर्षेद के अध्यक्ष अपना दलील देते हुआ कहते है कि वर्त्तमान समय में हम ४१ मलद पानी कि आपूर्ति कर रहे है ! साथ ही सभी लोगो तक पानी पहुचाने के लिये प्रत्येक वाड में पञ्च चापाकल लगाने का अभियान शुरू कर दिया गया है ! यानि कि आगामी एक माह के अन्दर २८५ चापाकल राजधानी में लगा दिया गया जायेगा ! इसके अलावा उनोहने यह भी कहा कि शहर में विश्वास बोर्ड , हुडको एवं केंद्रीय भूगर्भ जल आयोग के सहयोग से करीब २२ बोरिंग लगाने कि भी योजना है ! जिससे एक हद तक राजधानी वासियों को शुद्ध जल आपूर्ति हो जाएगी !
                                                               लेकिन सुरसा के तरह एक सवाल मुह बाये खरी है कि क्या इन योजनाओ का कार्यान्वयन हो पायगी , इसके लिए ढेर  सारे पैसे कहा से  आएंगे ! और अगर पैसे आ भी गए तो इस गर्मी तक इन योजनओ को अमली जमा पहनाया जा सकेगा ! शायद नहीं ! हलाकि बारहवे वित् अयोग़ से जल परिषद ने श्री आबादी को शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए ३०० करोर रूपये कि मांग कि गयी है ! लेकिन इन पैसो का अबतक स्वकृति नहीं मिल पाई है ! इसी वजह से अबतक काम भी शुरू नहीं हो पाया है ! और राजधानी के लोग प्रदूषित पानी पिने को मजबूर है , और न जाने कब तक प्रदुसित पानी पीकर लोग तड़पते रहेगे !
                                                                दूसरी तरफ पाटलिपुत्रा जिस गंगा कि गोद में बैठी है वह भी शायद यहाँ के निवासियों से रूठ गयी है ! तभी तो दिनोदिन वह सूखती ही जा रही है , हलाकि इसे वापस लेन के लिये कई योजनाओ को चलाया गया कुछ तो चल भी रहे है ! पर शायद गंगा माँ अपने बच्चो से इतना जायदा रूठ गयी है कि कुसुमपुर कि इस पाबन धरती को छोड़ अन्यंत्र अपना वास  बनाने के लिए बढ़ रही है ! शायद इसका वजह भी हम ही है ! हमने गंगा को इतना जायदा प्रदुसित कर दिया है कि वह चाह कर भी यहाँ रहना नहीं चाहती है ! ! गंगा के नजदीक रहने से राजधानी के लोगो को एक हद तक पानी कि आपूर्ति हो जाती थी ! लेकिन इससे स्तर में लगातार आ रहे गिरावट के वजह से वह भी संभब नहीं हो पा रह है ! और लोग पानी के एक एक बूंद के लिए तरस रहे है ! कई मोहल्ले तो ऐसे है जहा कई दिनों तक पानी आता ही नहीं है , लोग पानी जैसे बुनियादी सुबिधा के लिए आये दिन सड़क पर उतर आते है ! और प्रशासन के अस्वासन के बाद इन्हें अपना लड़ाई तत्काल खत्म करना पड़ता है लेकिन नतीजा वाही धक् के तिन पात!
                                                       देश कि स्वतंत्रता में अहम् भूमिका निभाने वाले इस राज्य कि हालत महज आजादी के ६० बर्षो बाद ही ऐसा हो जायेगा , आजादी के दिवानो ने कभी ऐसा सोचा भी नहीं होगा ! इन ६० वर्षो में राज्य के सिहासन  पर कई पटियों के सरदार ने अपना आसन जमाया ! लेकिन किसी ने भी राज्य के विकास ,राज्य के लोगो के लिए पानी जैसी बुनियादी सुबिधा के बारे में नहीं सोचा ! शायद यही कारण है कि राज्य के लोग पानी कि बूंद बूंद के लिए तड़प रहे है ! क्या आज भी हमे अपनी बुनियादी सुबिधा के लिए सड़क पर उतरना पड़ेगा , क्या आज भी लोग पानी बिन प्यासे मरते रहेगे ! इस सवाल का जवाब पूरा पाटलिपुत्रा के लोग मांग रहा है ! लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं है !          

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