Friday, June 04, 2010

गाथा सिख धर्म का

                                                पटना बिहार कि राजधानी होने के कारण ही महान नहीं है !बल्कि धार्मिक और एतिहासिक होने के कारण भी महत्वपूर्ण है ! धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसकी महता सिख धर्म के दसवे और अंतिम गुरु गोविन्द सिंह कि जन्मस्थली होने के कारण भी है ! जिसका वर्तमान नाम तख्त श्रीहरिमंदिर जी पटना साहिब है ! गुरु गोविन्द सिंह कि आत्मकथा विचित्र नाटक में भी पटना कि महता को दर्शाया गया है !इसके अलावे गायघाट , गोविन्दघात , गुरु का बाग , हांड़ी साहब मानो सिखों के लिए पवन धाम है !
                           पटना के इस पावन धरती को सब से पहले सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी ने पवित्र क्या था !जब उनोहोने पश्चिम दरवाजा से पटना के अन्दर प्रवेश किये और भक्त जैसमल को मुक्ति का मार्ग बताया ! ऐसा कहा जाता है कि जैसमल पूर्व के विसंभारपुर और आधुनिक गायघाट में रहा करता था !जब गुरुनानक देव जी यहाँ आये तो ,जैसामल ने उन्हें अपनी मुक्ति का आग्रह किया ! लेकिन गुरु ने कहा कि अभी तुम्हारा मुक्ति का समय नहीं आया है ! लेकिन उसकी बढती उम्र को देख गुरु ने उसे एक कुंद बनवाने का परामर्श देकर कहा कि वे गंगाजी से आग्रह करेगे कि गाय रूप में कुंड के पास आकर अपने मुख से तुम्हे स्नान करा दिया करे ! उसके बाद से गंगाजी प्रतिदिन गाय रूप में आकर जैसामल को स्नान कराने लगी ! तभी से विसंभारपुर गॉव का नाम गाय घाट हो गया ! साथ ही गुरु नानक जैसामल को जाते जाते गुरु तेगबहादुर दुआरा मुक्ति का मार्ग भी बता गए !
                               इसके बाद जैसामल गुरु तेग बहादुर का इंतजार करने लगे ! और एक दिन जब गुरु आये तो उनके शिष्यों ने जैसामल को गुरु कि आने कि खबर दी तो जैसामल ने कहा कि गुरु है तो दरबाजे खोलने कि क्या आवश्यकता है ! वे खुद अन्दर आ जाये ! तब गुरु एक खिड़की से अपने परिवार ,संगत और घोड़ा सहित छोटा रूप कर कुटी में प्रवेश किया और जैसामल को मुक्ति प्रदान किया ! भक्त जैसामल का अंतिम संस्कार कर गुरु तेग बहादुर ने अपने पुराने घर को नये सिरे से निर्माण का कार्य शुरू  किया ! लेकिन निर्माण के दौरान पहले से मौजूद दो थम्बो में अजीब सा चमत्कार शुरू हो गया ! जब थम्बो को क्षत के निचे खड़ा किया जाता तो ये बड़े हो जाते ,और जब काटने के लिए बाहर निकाले जाते तो ये छोटे हो जाते ! तब गुरु ने भवन निर्माण कार्य बंद करवाकर कहा कि समय आने पर सिख संगत इस कार्य को पूरा करेगे ! इसके साथ ही गुरु तेग बहादुर ने दोनों थम्बो को वर दिया कि जो भी इन थम्बो को गला लगाएगा , उसको मनोवांक्षित फल मिलेगा !
                                         समय परिवर्तन के साथ इस विशाल गुरुदुआरे का निर्माण किया गया ,जिसे गायघाट या बड़ी संगत के नाम से जाना जाता है ! इस गुरुदुआरे में आज भी दी चमत्कारी थम्ब , छोटी खिड़की , कुंड , जहा जैसामल को गंगाजी गाय के रूप में स्नान कराती थी ,अभी भी मौजूद है !इसके अलावा वह खुटा ,हरसिंगार फूल के पेड़ के रूप में मौजूद है ,जिसमे गुरु ने अपना घोर बांधा था !गुरु के यादो को संजोये बड़ी संगत अपनी सुन्दरता से तो लोगो को अपमी ओर आकर्षित करती ही है , पर लोग इसे देखने के साथ अपनी मनोकामना पूर्ण का स्थान भी मानते है !
                      गुरु तेग बहादुर जी गुरु नानक देव के बाद पहले गुरु थे जिन्होंने पंजाब के बाहर धर्म प्रचार किया !१६६६ इसवी के आरम्भ में पटना आये तो उनके साथ उनकी माता नानकी जी, धर्मपत्नी , भ्राता कृपाल्चंद जी और सिख दरवारी थे ! पटना साहिब आकर जैसामल को मुक्ति देकर रजा विशन सिंह के साथ आसाम चले गए !और अपने परिवार को पटना के गायघाट में छोड़ दिया सालिस राय जो कि गुरुनानक  का शिष्य  था ,को जब पता  चला कि गुरु कापरिवार पटना में है तो उन्होंने अपने  अपने घर खाने  पर बुलाया  और तभी  से माता गुजरी सालिस रायके धर्मशाला  में निवास करने लगी  जहा उस महान पुण्य आत्मा  का जन्म हुआ जिन्हें  लोग गुरु गिविंद  सिंह के नाम से जानते  है !आज यह  स्थान तख़्त श्री हरमंदिर जी के  नाम से जाना जाता है ! यह स्थान सिख धर्माब्लाम्बियो   के पाच तख्तो में से दूसरा तख़्त के रूप में से जाना जाता है ! सिख शांति का केंद्र इस ईमारत को संगत भी कहा जाता है !सिख कौम ने इसे तीर्थ बना दिया है जो सिखों के लिए सत्कार तथा नम्रता , सरधा का प्रतिक है !
                                    बाल्यकाल के ७ बर्ष के दौरान गुरु गोविन्द सिंह ने कई लीलाए कि जिसका गवाह यहाँ का जरा जरा है! कहते है कि असाम के रजा ने बाल प्रीतम को हीरे जडित दो सोने के कंगन भेट किये थे ! एक दिन गंगा जी करे घाट पर खेलते हुए प्रीतम ने कंगन नदी में फेक दिया !जब माता ने पूछा  कंगन कहा है , तो दूसरा कंगन नदी में फेकते हुए प्रीतम ने कहा वहा फेक दिया है ! इसलिए घाट का नाम कंगन घाट या गोविन्द घाट कह जाता है ! जो कि सिखों के लिए महत्वपूर्ण  दर्शनीय स्थल में से एक है !  
                                                              तख़्त हरमंदिर के समीप ही बाल लीला गुरुदुरा या मौनी संगत है ! यह स्थान भी महत्वपूर्ण एवं दर्शानिया है ! कहा जाता है कि यह स्थान पहले रजा फतहचंद का महल था ! फतहचंद  कि रानी मैनी को कोई संतान नहीं था ! इसी कारण गोविन्द सिंह मैनी को माता कहा करते थे ! और मैनी भी बाल प्रीतम को संतान के रूप में ही मानती थी ! गुरु गोविन्द सिंह ने अपने संगत के साथ रानी मैनी के यहाँ पूरी और घुघुनी खाई तथा वरदान दिया कि इस स्थान पर पूरी और घुघनी नित प्रतिदिन वितरित किया जायेगा तो मै बच्चो के रूप में आकर भोग लगाया करुगा ! तभी से यह परम्परा चली आ रही है ! और लोग पूरी -घुघनी का भोग लगा गोविन्द सिंह में अपना श्रधा  सुमन अर्पित करते है ! 
                                                                                  तख़्त श्री हरमंदिर के अन्दर यह कुआ माता गुजरी दुआरा शापित कुआ है ! जिसका पानी खारा है एसी मान्यता है कि माता गुजरी ने बाल प्रीतम से तंग आकर कुआ को शापित कर दिया ! माता गुजरी दुआरा शापित कुआ आज लोगो के लिए दर्शानिये  हो गयी है ! यहाँ लोग अपना माथा टेक माता का आशीर्वाद ग्रहण करती है ! कहा जाता है कि इस कुआ पर आस पड़ोस कि औरते पानी भरा करती थी ! गोविन्द सिंह जी औरतो का घर गुलेल से फोड़ दिया करते थे ! जब औरते माता से शिकायत कि तो माता ने मिटटी जगह पीतल का घड़ा दे दिया ! फिर भी गोविन्द सिंह ने तीर से उसमे छेद कर दिया करते थे ! वार वार बी शिकायत से तंग आकर माता ने पानी को खारा हो कने का शाप दे दिया ! ताकि पानी पिने लायक ही नहीं न रहे ! लेकिन माँ शाप भी बच्चो के लिए आशीर्वाद ही होता है ! इसी कारण यहाँ लोग माथा टेक माँ का आशीर्वाद ग्रहण करते है! इसके अलावे भी गोविन्द सिंह ने अपने नन्हे-नन्हे पैरो कि अमित छाप से न जाने कितने लीलाए कि जो सिखों के लिए दर्शानिये है !
                                                           तख़्त श्री हरमंदिर से करीब २ किलोमीटर कि दुरी पर स्थित है गुरु का बाग ! को कि सिखों का प्रमुख दर्शानिये स्थलों में से एक है ! कभी काजियो का यह बाग पूर्ण रूपेण सुखा पड़ा था , लीकें गुरु तेग बहादुर आसाम से वापस पटना आये तो उसी स्थान पर उतरे ! गुरु का चरण स्पर्श मात्र से ही बाग हरा भरा हो गया ! तभी काजी ने इस बाघ को गुरु के चरणों में समर्पित केर दिया , तभी से यह बाग गुरु का बाग कहा जाता है!
                            पटना के पूर्व छोड़ पर हरमंदिर स्थित है तो पशिम छोड़ पर दानापुर में गुरुदुअरा हांड़ी साहब स्थित है ! जो सिख धर्मावलम्बियों के लिए काफी महत्व रखता है ! एसी मान्यता है कि गुरु गोविन्द सिंह जी पाच बर्ष कि अवस्था में पटना छोड़ आनंदपुर जा रहे थे तब अपने संगत के साथ यहाँ ठहरे थे ! जहा माता जस्नी ने हांड़ी में खिचड़ी पकाकर गोविन्द सिंह जी को खिलया था ! माता जसनी जब हांड़ी भर खिचड़ी गुरु गोविन्द सिंह के पास लायी तो गुरु ने पूरी संगत में उसे परोसने को कहा , जब माता जसनी कम खिचड़ी कि बात सोचकर चिंचित हुई तो गुरु ने वरदान दिया कि इस हांड़ी से जितनी चाहो खिचड़ी निकालो हांड़ी भरी रहेगी ! यह चमत्कार देख माता जसनी ने अपने घर को धर्मशाला में परिवर्तित कर दिया और जीवन भर उसी हांड़ी में खिचड़ी बनाकर सांगतो को खिलाती रही !   
                     सांस्कृतिक धरोहरों का शहर पटना गुरु के चरण कमल परते ही धार्मिक केंद्र बन गया !जो कि न सिर्फ सिख धर्म्वालाम्बियो के लिए पवित्र स्थल बना बल्कि अन्य धार्मिक समुदाय के लिए भी पवित्र , पावन और  दर्शानिये है !                           




                         
                                                                                 







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