Monday, June 14, 2010

काकोलत कि सफ़र

                                                               पाटलिपुत्र यानि आधुनिक पटना से करीब ८० किलोमीटर दक्षिण में बसा जिला नालंदा को अपने ज्ञान और वैभव के लिए प्राचीन कल से ही जाना जाता है ! संस्कृत के "नालम+दा" से बना है , नालंदा ! नालम अर्थात " कमल " यानि गायन का प्रतिक ! " दा " अर्थात देने वाला ! दोनों ही अपने स्थान पर सत्य है ! एक प्राचीन मान्यता है कि पूर्व कल में यहाँ अनेके सरोवर थे , जिनमे कमल होते थे ! इसी कारण इसका नाम नालंदा पड़ा ! विधुआनो के पावन इस धरती से गुजरा तो स्वतः ही मन में लिखने कि जिज्ञासा जग उठा ! सो लिखने बैठ गया ! दरअसल हमरा पड़ाव था नवादा जिला स्थित " ककोलत जलप्रपात " ! जहा मै अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा था ! पर्यटकों के लिए चिरस्मर्निये मन जाने वाला यह स्थल अपने खूबसूरती से बरबस ही लोगो को अपने ओर आकर्षित करता है ! कोडरमा के पठार से उतरते जलप्रपात कि निर्मल जलधारा जब १५० फिट कि उचाई से जमीन पर गिरती है तो मानो शंकर कि जटा से गंगा निकली हो ! स्वच्छ , शीतल पवन और दुखो को हरने वाली जलधारा में स्नान करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है , ऐसा मर्कंदाये पुराण में लिखा गया है ! जब हमने इस मनोहर दृश्य को देखा तो कदम स्वतः ही उस पानी कि ओर चल पड़े , मानो वह हमे अपनी ओर आकर्षित कर रही हो ! ओर हम सभी उसके आकर्षण में इसकदर खो गए कि समय का पता ही नहीं चला ! काकोलत के निर्मल जल में हम घंटो अटखेलिया करते रहे !
                                                        हमारे इस सफ़र कि शरुआत पटना से हुई ! मै अपने ग्रुप के साथ काकोलत जाने का मन बनाया ! जाना तय हुआ 17 जुलाई को ! 17 जुलाई कि सुबह जब नींद खुली तो घडी 5 बजा रही थी ! मै उठा और दरबाजा खोलकर टेरिस पर आया तो इन्द्रराज ने मेरा स्वागत बरसात कि चंद बुँदे चेहरे पर बिखेर कर किया ! चेहरे पर बरसात कि बूंद पड़ते ही मै उस कमल कि तरह खिल उठा जो पानी कि खूबसूरती को बढ़ा देती है ! लेकिन तुरंत ही उस डाली के तरह मुरझा भी गया , जब कोई कमल तोड़ लेता है ! कारण इन्द्रराज इस कदर बरस रहे थे कि मानो हमारे खुशियों पर पानी फेरना चाहते हो ! पर हम भी कहा मानने वाले थे सो अन्तः हमारा उत्साह देखकर गजराज को ही शांत होना पड़ा ! और हम अपने ग्रुप के आठ(८) सदस्यों के साथ अपना सफ़र शुरू किया ! अब मै अपने ग्रुप के सदस्यों से परिचय करा दू !
                                                   सबसे पहले हमारे  ग्रुप कि लीडर दिव्या ! जिसके घर से इस सफ़र कि शुरुआत हुई थी ! लीडर इसलिए कि उसमे सभी को साथ लेकर चलने कि छमता जो है ! इसके अलावा दिल कि सवच्छ , पावन और निर्मल ,काकोलत कि जलप्रपात से गिरती जलधारा कि तरह , जो गिरकर भी अपनी निर्मलता नहीं खोती, बल्कि दुसरे को शीतल कर जाती है ! इसी कारण हम सभी कि चहेती ! लेकिन इन सबसे पड़े अधिक भाभुकता ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है ! हर कोई को अपना समझने के कारण कभी कभी आहात भी होती है जिसे वह अपने खुबसूरत नयनो से आसू कि चंद बुँदे टपका कर भुला देती है ! अपने इन सब अच्छाइयो के कारण वह हमरे ग्रुप कि चहेती है !
                            ऐसा ही एक चेहरा हमारे ग्रुप में और है , कीर्ति सौरभ ! अपने नाम के अर्थो को सही चरितार्थ करता कीर्ति पर तो हम सभी को नाज है ! हो भी क्यों नहीं , हम सभी कि जन जो उसमे बसती है ! दिल का सच्चा कीर्ति अपना नफा -नुकसान देखे बिना दुसरो कि मदद को तत्पर रहता है !अपने नाम का कीर्ति पताका फहराने वाला कीर्ति कि यही खुबिया उसे दुसरो से अलग करती है !
                                तीसरा सदस्य राजेश ! जिसके बारे में जितना लिखा जाय कम होगा ! हसमुख स्वभाब वाला राजेश तो हमारे ग्रुप कि मुस्कुराहट है ! हमेशा चेहरे पर मधुर मुस्कान बिखेरने वाला राजेश दुसरो को भी हँसाता रहता है ! अगर ये हमारे ग्रुप में न हो तो ग्रुप उस विधवा स्त्री कि तरह हो जाती है , जिसके मांग का सिंदूर और कलायियो कि चूड़िया तोड़ दी जाती है लेकिन इसके आते ही ग्रुप एक सुहागिन कि तरह चमक उठता है, जो अपनी मांग कि चमकती सिंदूर और हाथ कि चूड़िया खनकाती रहती है !
                                                                                      ग्रुप का चौथा सदस्य अनुराग ! हमेशा दुसरो से अलग दिखने कि कोशिश करने वाला अनुराग वास्तव में है भी कुछ अलग ! अलग करने और अलग दिखने कि चाह कभी कभी दुसरो को काफी दुखी कर जटा है ! पर दिल का बहुत अच्छा ,बहुत प्यारा ,किसी को भी उस पर प्यार आ जाय !
         ग्रुप कि पंचिवी सदस्य के बारे में थोडा बता दू ! हलाकि ग्रुप में आये उसे जायदा वक्त नहीं हुआ है !पर चंद ही दिनों में उसने पुरे ग्रुप में अपनी पैठ जमा ली है! सुन्दर नैन नक्श वाली इस सदस्या का नाम मनीषा है ! मनीषा जितनी सुंदर दिखती है उससे कही जायदा दिल कि सुंदर है ! किसी पर तुरंत भरोसा करने वाली मनीषा बोलती कम 
सुनती जायदा है ! इसका यह स्वभाव इसके सुन्दरता को और बढ़ा देता है !जिसके कारण हर कोई इससे तुरंत ही प्यार करने लग जाते है !
                            चंचल , बडबोली और विंदास स्वभाव कि तुलिका हमरे ग्रुप कि छठी सदस्या है ! जो नाराज तो बात बात पर हो जाती है ,पर चंद मिनटों के बाद ही नाराजगी को ऐसे भुला जाती है , मोनो कुछ हुआ ही न हो !
हमेशा मस्त रहने वाली तुलिका कि यही कोशिश रहती है कि उसके आस पास के लोग भी उसी कि तरह बिंदास रहे !
       तुलिका कि तरह ही विंदास , चुलबुला सा प्यारा लड़का है अमित ! जो हमारे ग्रुप का सातवा सदस्य है ! पर वह छोटी छोटी बातो पर भी अपनी नाराजगी जाहिर कर देता है ! लेकिन अपनी गलती का एहसास होते ही तुरंत मन भी जटा है ,और सभी को मन भी लेता है !
                                                                 अपने ग्रुप का आठवा और अंतिम सदस्य मै स्वय ! अपने बारे में क्या लिखू , बस इन सातों के मेल से बना माला का एक मोती ! ये है हमारा ग्रुप जिसमे सब एक दुसरे से जुड़े है ! 
                                                इन्ही आठो के साथ हमारा सफ़र शुरू हुआ ! और फिर शुरू हुआ कभी  न ख़तम होने वाले मौज मस्ती का दौड़ ! एक ऐसा दौड़ जो काकोलत से लौटकर ही एक यादगार के रूप में खत्म होता ! लेकिन शायद हमे अपनी ही नज़र लग गयी ! ऐसा हुआ फतुहा पार करते ही ! जब हमारे टीम के एक सदस्य कि बाते दुसरे सदस्य को बुरी लग गयी ! उसने अपनी नाराजगी तुरंत जाहिर कर दी ! इस कारण सभी का मन उदास हो उठा ! उदासी के इस आलम के कारण सभी ने पटना लौटने का मन बना लिया ! लेकिन थोड़ी सी मन - मनौवल के दौड़ के बाद हम सभी फिर एक होकर मौज मस्ती के सफ़र पर चल पड़े ! पूरा रास्ता हम नाचते गाते रहे और किस  तरह काकोलत पहुच गए पता ही नहीं चला ! मानो चंद घंटे पहले ही तो हमने अपना सफ़र शुरू किया था ! लेकिन जैसे ही काकोलत जलप्रपात से गिरती निर्मल जलधारा पर नजर पड़ी तो लगा हमे इतनी देर क्यों लगा !हमे औए जल्दी आना चहिये था ! एक ऐसा मनोहर दृश्य जो मान को पूरी तरह शांत कर रहा था ! करीब १५० फिट कि उचाई से गिरती निर्मल जल धरा शंकर कि जटा से निकलती गंगा कि याद तजा कर रही थी ! जिसे हमने इतिहास के पन्नो में पढ़ा था , या टीवी सीरियलों में देखा था ! काकोलत के पानी में इतना आकर्षण था कि सभी के कदम उस ओर खुद ही चल पड़े ! यह सब हमलोगों के साथ ही नहीं हो रहा था ! वास्तव में वहा का पानी इतना निर्मल है कि लोगो के कदम स्वतः ही उस ओर चल पड़ते है !
                                                                                           हुआ भी कुछ ऐसा ही पानी कि निर्मलता को देख सबसे पहले कदम बढ़ने वालो में अनुराग था ! काकोलत के मुहाने पर पहुचते ही अनुराग अपना सबकुछ पटक पानी में कूद पड़ा ! अनुराग के उपर सवच्छ और निर्मल पानी को गिरता देख मनीषा और मै भी उस जलधारा में अटखेलिया करने पहुच गए ! उसके बाद राजेश कीर्ति पंहुचा ! फिर तो दिव्या और तुलिका कहा पीछे रहने वालो में से थी ! वह दिनों भी पहुच गयी पानी के उस कुंड में जो विशेष रूप से पर्यटकों के लिए बनाया गया था ! फिर तो हम आठो ने पानी में ऐसा धमाल मचाया कि आस पास के पर्यटक हमे ही देख रहे थे और हमारे बदमाशियों  पर मंद मंद मुस्करा रहे थे ! पानी के अन्दर अटखेलियो करते हमे काफी समय बीत गया ! इस दौरान हमारा मन तो पानी से निकलने का नहीं कर रहा था , पर हमे पटना वापस भी आना था , सो हम सभी करीब  दो घंटे पानी में रहने  के बाद
बाहर निकले ! फिर तैयार होकर खाने पर इसकदर टूट पड़े मानो बर्षो से भूखे हो ! खाने के बाद हम सभी काकोलत कि रमणीक दृश्य को देख आहे भरने लगे ! हमे यहाँ से लौटने का मान तो नही कर रहा था ! पर मज़बूरी थी , सो हम सभी फिर सवार हुए अपने गारी पर ! शुरू में रास्ता खराब होने के वजह से हमारा मौज मस्ती का दौड़ थोडा धीमी रहा , पर रास्ता ठीक होते ही शुरू हो गया एक ऐसा दौड़ जिसमे सभी ,सभी चीज भुलाकर एक दुसरे में इसकदर खो गए मानो , हम सभी आठ जिस्म और एक जान हो ! रास्ते भर हमारा सफ़र नाचते गाते बिता ! कभी राजेश तो कभी कीर्ति कभी मै तो कभी अनुराग या फिर मनीषा ! लेकिन हम पांचो के अलाबा दिव्या , तुलिका और अमित पर ऐसा नशा छाया कि तीनो पुरे रास्ते झूमते और सभी को झुमाते आये !
                                                                                                            इस तरह करीब ९ बजे पटना आकर हमारा सफ़र समाप्त हुआ ! एक ऐसा सफ़र जो पूरी तरह से मौज मस्ती से भाता था ! एक ऐसा सफ़र जो सभी के लिये यादगार साबित हुआ , एक ऐसा सफ़र जिसमे सिर्फ प्यार ही प्यार था ! फिर हम सभी एक नये सफ़र का प्लान के अपने अपने घर के लिये रवाना हो गए ! और अगले दिन ऑफिस पहुचकर सफ़र कि चर्चा में पुरे दिन मशगुल रहे !

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